17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जायेगी। देश के विभिन्न जगहों में विश्वकर्मा पूजा की तैयारी अंतिम चरण में हैं। कई जगह भव्य पंडाल बनाये जा रहे हैं जहां भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित कर पूजोपासना की जायेगी। विश्वकर्मा निर्माण व सृजन के देवता माने जाते हैं। प्रतिमा के साथ साथ फेक्ट्रियों,उद्योगों और आफिस में लगी हुई मशीनों की पूजा की जाती है।
कन्या राशि में सूर्य प्रवेश के साथ ही विश्वकर्मा जयंती मनायी जायेगी जिसमें सृष्टी के आदिदेवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की विधिवत पूजा की जायेगी। पूजा के दौरान प्रतिमा के साथ साथ विभिन्न तरह के औजार व उपकरणों की भी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर वाहन, मशीन आदि की पूजा करने से मशीनों की आयु लंबी होती है तथा कभी बीच में धोखा नहीं देते हैं। यह पूजा विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि राज्यों में पूजा आराधना की जाती है। इस दिन मशीनों से काम नहीं लिया जाता है बल्कि विधिवत पूजा अर्चना की जाती है।
मान्यता है कि स्वर्ग के राजा इंद्र का अस्त्र, वज्र का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। जगत निर्माण के लिए विष्श्वकर्मा ने ब्रहमा की सहायता की और संसार की रूपरेखा का नक्शा भी तैयार किया था। साथ ही उड़िसा स्थित भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण किया था। माता पार्वती के कहने पर भगवान विष्वकर्मा ने ही सोने की लंका तैयार की थी। यही नहीं भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने द्वारका नगरी का निर्माण किया था।
कन्या राशि में सूर्य प्रवेश के साथ ही विश्वकर्मा जयंती मनायी जायेगी जिसमें सृष्टी के आदिदेवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा की विधिवत पूजा की जायेगी। पूजा के दौरान प्रतिमा के साथ साथ विभिन्न तरह के औजार व उपकरणों की भी पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस अवसर पर वाहन, मशीन आदि की पूजा करने से मशीनों की आयु लंबी होती है तथा कभी बीच में धोखा नहीं देते हैं। यह पूजा विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक आदि राज्यों में पूजा आराधना की जाती है। इस दिन मशीनों से काम नहीं लिया जाता है बल्कि विधिवत पूजा अर्चना की जाती है।
मान्यता है कि स्वर्ग के राजा इंद्र का अस्त्र, वज्र का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया था। जगत निर्माण के लिए विष्श्वकर्मा ने ब्रहमा की सहायता की और संसार की रूपरेखा का नक्शा भी तैयार किया था। साथ ही उड़िसा स्थित भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की मूर्ति का निर्माण किया था। माता पार्वती के कहने पर भगवान विष्वकर्मा ने ही सोने की लंका तैयार की थी। यही नहीं भगवान श्रीकृष्ण के आदेश पर विश्वकर्मा ने द्वारका नगरी का निर्माण किया था।
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