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पथरोल काली मंदिर |
भारी संख्या में प्रतिदिन श्रद्धालु पूरी आस्था व विश्वास के साथ यहां पूजा&अर्चना करने पहुंचते है। मंगलवार और शनिवार को यहां भारी भीड़ उमड़ती है। लोगों में विश्वास है कि यहां आकर पूरी श्रद्धा भाव से मांगी गयी मनोकामनायें हर हाल में पूरी होती है। इस बार मैंने भी माता के दरबार में जानें की योजना बना ली और बाइक से यात्रा शुरू कर दिया।
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पथरोल जाने के मार्ग का नजारा |
बाइक यात्रा की सबसे बड़ी खासियत यह कि समय का निर्धारण आप खुद से कर सकते हैं। सुबह छह बजे मैं अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गया। मुझे केवल सौ किलोमीटर की ही यात्रा करनी थी इसलिए आराम से से जा रहा था। वहीं आपकी गति अगर धीमी हो तो इसका एक और फायदा यह होता है कि रास्ते में आनेवाले किसी खुबसूरत नजारों को भी मिस नहीं करते है।
झारखंड की सड़कों पर सफर कर रहे हैं तो प्रकृतिक नजारों का साक्षात्कार सहज ही होता रहेगा। कभी घनें जंगलों के बीच से होकर गुजरेंगे तो कभी पथरीली नदियों के उपर बने पुल से।
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शहरों की दूरी बताता एक बोर्ड |
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मधुपुर मुख्य मार्ग |
मधुपुर से पथरोल काली माता मंदिर की दूरी महज सात किलोमीटर ही है। मधुपुर से निकलकर मंदिर की और चल पड़ा। जैसे ही आप मंदिर के नजदीक पहुंचते हैं। मोड़ पर थोड़ी चलहपल व बाजार का माहौल देखकर ही अहसास हो जाता है कि आसपास ही कहीं मंदिर है। सामने ही एक प्रवेश द्वार दिखा जिसमें बड़े अक्षरों से 'मां काली द्वार, पथरोल' लिखा हुआ था। अब मेरी यात्रा लगभग समाप्त होने को थी। मौसम काफी सुहावना था, आकाश में काले बादल छाये हुए थे। बीते एक घंटे से बादलों का मिजाज ऐसा था मानों अब न तब मुसलाधार बारिश शुरू हो जायेगी। लेकिन यात्रा के दौरान कहीं भी बारिश नहीं हुई और बादलों के कारण कड़ी धूप का भी सामना नहीं करना पड़ा। फलस्वरूप मेरी यात्रा काफी आनंददायक रही।
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प्रवेश द्वार |
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मुख्य द्वार |
मुख्य द्वार
पर
कई
पंडा
यानी
पुजारी
मिल
जायेंगे
जो
पूजा
करवाने
को
ले
तैयार
रहेंगे।
हलांकि
अन्य
मंदिरों
की
अपेक्षा
इस
मंदिर
के
पुजारियों
का
व्यवहार
काफी
अच्छा
है।
पूजा
के
क्रम
में
काफी
सहयोग
करते
है।
प्रवेश
करते
ही
आप
एक
बड़े
आंगन
में
पहुंच
जाते
हैं।
जहां
काली
माता
के
मुख्य
मंदिर
के
अलावा
भी
कई
अन्य
मंदिर
हैं।
सबसे
पहले
जो
मंदिर
मिलता
है
वह
काली
माता
का
ही
मंदिर
है।
यहां
पर
भक्तों
की
भीड़
होती
है।
खासकर
मंगलवार
व
शनिवार
को
ज्यादा
भीड़
होती
है।
यहां
पर
बलि
देने
की
भी
परंपरा
है।
मंदिर
परिसर
के
बाहर
सजी
दुकानों
से
प्रसाद
लेकर
आयें
तथा
माता
को
अर्पित
करें।
यहां
भक्तगण
मन
की
मुरादें
माता
से
मांगते
हैं।
लोगों
में
विश्वास है
कि
जो
भी
पूरी
आस्था
व
श्रद्धा
से
कुछ
मांगता
है
उसकी
मनोकामना
पूरी
होती
है।
बताया जाता है कि यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है तथा इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। इस मंदिर का निर्माण राजा दिग्विजय सिंह ने कराया था। ![]() |
मंदिर प्रांगण |
मंदिर प्रांगण में दुर्गा मंदिर, शिव मंदिर, गणेश मंदिर, सूर्य मंदिर समेत अन्य मंदिर भी है। मुख्य मंदिर के सामने यज्ञ कुंड भी बना है। यहां का भक्तिमय माहौल एक सुखद अहसास दिलाता है। मैनें भी माता का दर्शन, पूजा किया तथा कुछ वक्त प्रांगण में ही बैठ कर बिताया। यहां बिताये कुछ पलों का अनुभव इतना सुखद था कि मन ही मन दुबारा आने का संकल्प लेते हुए मंदिर से वापस घर की ओर चल पड़ा।
कैसे पहुंचे - मधुपुर जंक्शन सबसे निकटतम स्टेशन है। स्टेशन से मंदिर तक जाने के लिए हर समय आटो रिक्शा समेत अन्य गाड़ियां उपलब्ध रहती है। मधुपुर जंक्शन देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।
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मधुपुर जंक्शन |
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