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फोटो: गूगल सर्च |
पूजा का महत्व
सरस्वती माता को साहित्य, संगीत और कला की देवी माना जाता है। शिक्षा के प्रति जन-जन में जागरूकता व उत्साह भरने, लौकिक अध्ययन व आत्मिक स्वाध्याय की उपयोगिता को गंभीरता से समझने के लिए सरस्वती पूजा काफी महत्वपूर्ण है। विद्या व ज्ञान को बहुमूल्य संपदा के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यही वह चीज है जो मानव को पशु से अलग करती है।माता सरस्वती का स्वरूप
माता सरस्वती के एक मुख व चार हाथ हैं। मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा है जो भाव संचार व कलात्मकता की प्रतीक है। पुस्तक से ज्ञान व माला से ईश निष्ठा व सात्विकता का बोध होता है।कोई भी शैक्षणिक कार्य शुरू करने से पहले इनकी पूजा की जाती है।कैसे करें पूजा
किसी स्कूल, काॅलेज, शैक्षणिक प्रतिष्ठान, घर या कहीं भी माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं तो बेहतर होगा कि जानकार ब्राह्मण से ही करवायें। किसी खास परिस्थिति में आपको स्वयं करना पड़ रहा है तो आप कुछ इस तरह से पूजा कर सकते हैं:स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध वस़्त्र धारण कर पूजा आसन में पूर्वाभिमुख होकर पूरी भक्ति भाव से बैठ जायें। पूजन को ले संकल्प करें उसके बाद कलश स्थापित करें, पंचदेवता पूजा, नवग्रह पूजा करें। पूजन विधि बताने से यह पोस्ट काफी लंबा हो जायेगा। अगर आप पूरी विधि चाहते हैं तो बतायें। वैसे पंचदेवता व नवग्रह पूजन आदि पर एक पोस्ट लिखने वाला हूं।
उसके बाद प्रतिमा स्थापित कर पूजन करें। ध्यान, आवाहन आदि करें। आसन, अघ्र्य, अचामन, स्नान आदि के लिए जल समर्पित करें। पंचामृत स्नान फिर शुद्ध जल से स्नान करायें। धूप, दीप, वस्त्र, उपवस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, आभूषण, नैवैद्य, फल समेत अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें (हलांकि हरेक सामग्री अर्पित करने के श्लोक हैं)। फिर प्रार्थना करते हुए आरती करें।
सरस्वती वंदना -
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृताया वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा.पुस्तक.धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥2॥
- दीपक मिश्रा, देशदुनियावेब
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