फिल्म - जय मम्मी दी
निर्देशक - नवजोत मुलाटी
मुख्य कलाकार - सन्नी सिंह निज्जर,सोनाली सहगल, सुप्रिया पाठक, पूनम ढिल्लन, भुवन अरोरा, राजेंद्र सेठी, दानिश हुसैन, वीर राजवंत सिंह, आलोक नाथ
हास्य पैदा करने के लिए ‘जय माता दी‘ के तर्ज पर फिल्म का नाम ‘जय मम्मी दी‘ रखा गया हो। पर यह बाॅलीवुड की कामेडी फिल्म हमें हंसाने के बजाय रूला देती है। और पूरे फिल्म के दौरान पछताते ही रह जाते हैं कि आखिर यह फिल्म क्यों बनी? और हम अपना वक्त और पैसा दोनों बर्बाद करने थियेटर क्यों आये?
फिल्म की कहानी दो मां व उनके बच्चों के इर्द गिर्द घूमती है। फिल्म के पात्र भी कनफ्यूज्ड प्रतीत होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों मम्मियों के बीच गहरी दुश्मनी होती है।
दिल्ली के रोहिणी मोहल्ले में रहने वाले पुनीत खन्ना उर्फ पुन्नू (सनी सिंह) और सांझ भल्ला (सोनाली) पड़ोसी हैं। दोनों स्कूल के समय से एक.दूसरे को पसंद करते हैं। लेकिन इनकी मम्मियां लाली खन्ना (सुप्रिया पाठक) और पिंकी भल्ला (पूनम ढिल्लन) एक.दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहातीं। दोनों में बहुत पुरानी दुश्मनी है। क्यों है, किसी को पता नहीं। सांझ एक दिन पुन्नू को शादी के लिए प्रपोज करती हैए लेकिन वह मम्मी के डर के चलते मना कर देता है। सांझ और पुनीत दोनों अलग हो जाते हैं। फिर दोनों की शादी कहीं और पक्की हो जाती है। इसके बाद दोनों को लगने लगता है कि वे एक दूसरे के बगैर खुश नहीं रह सकते। लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि दोनों की मम्मियां किसी कीमत पर इसके लिए राजी नहीं होंगी।
पटकथा में दम नहीं है, किरदारों को ठीक से नहीं गढ़ा गया है। एकाध संवादों को छोड़ देंए तो उनमें हंसी का पंच नहीं है। कहानी एकदम सपाट तरीके से चलती हैए उसमें न कोई रस है और न रोमांच। फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं हैए जिसे देख.सुन कर मजा आ जाए। मुझे पूरी फिल्म के दौरान कहीं भी हंसी नहीं आयी। लाली और पिंकी की दुश्मनी की जिस वजह को फिल्म के क्लाइमैक्स में दिखाया गया है, वह हास्यास्पद है। हालांकि फिल्म बहुत उबाउ नहीं है, लेकिन एक फिल्म के बेहतर होने के लिए जो चाहिए, वह इसमें नदारद है। फिल्म का संगीत इसके प्रभाव को बढ़ाने की बजाय बाधित करता है। सन्नी सिंह का भी अभिनय हमें प्रभावित नहीं करता है।
‘जय मम्मी दी‘ एक अति साधारण फिल्म है
मेरी राय में रेटिंग - 2
- दीपक मिश्रा, देशदुनियावेब
निर्देशक - नवजोत मुलाटी
मुख्य कलाकार - सन्नी सिंह निज्जर,सोनाली सहगल, सुप्रिया पाठक, पूनम ढिल्लन, भुवन अरोरा, राजेंद्र सेठी, दानिश हुसैन, वीर राजवंत सिंह, आलोक नाथ
हास्य पैदा करने के लिए ‘जय माता दी‘ के तर्ज पर फिल्म का नाम ‘जय मम्मी दी‘ रखा गया हो। पर यह बाॅलीवुड की कामेडी फिल्म हमें हंसाने के बजाय रूला देती है। और पूरे फिल्म के दौरान पछताते ही रह जाते हैं कि आखिर यह फिल्म क्यों बनी? और हम अपना वक्त और पैसा दोनों बर्बाद करने थियेटर क्यों आये?
फिल्म की कहानी दो मां व उनके बच्चों के इर्द गिर्द घूमती है। फिल्म के पात्र भी कनफ्यूज्ड प्रतीत होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों मम्मियों के बीच गहरी दुश्मनी होती है।
दिल्ली के रोहिणी मोहल्ले में रहने वाले पुनीत खन्ना उर्फ पुन्नू (सनी सिंह) और सांझ भल्ला (सोनाली) पड़ोसी हैं। दोनों स्कूल के समय से एक.दूसरे को पसंद करते हैं। लेकिन इनकी मम्मियां लाली खन्ना (सुप्रिया पाठक) और पिंकी भल्ला (पूनम ढिल्लन) एक.दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहातीं। दोनों में बहुत पुरानी दुश्मनी है। क्यों है, किसी को पता नहीं। सांझ एक दिन पुन्नू को शादी के लिए प्रपोज करती हैए लेकिन वह मम्मी के डर के चलते मना कर देता है। सांझ और पुनीत दोनों अलग हो जाते हैं। फिर दोनों की शादी कहीं और पक्की हो जाती है। इसके बाद दोनों को लगने लगता है कि वे एक दूसरे के बगैर खुश नहीं रह सकते। लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि दोनों की मम्मियां किसी कीमत पर इसके लिए राजी नहीं होंगी।
पटकथा में दम नहीं है, किरदारों को ठीक से नहीं गढ़ा गया है। एकाध संवादों को छोड़ देंए तो उनमें हंसी का पंच नहीं है। कहानी एकदम सपाट तरीके से चलती हैए उसमें न कोई रस है और न रोमांच। फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं हैए जिसे देख.सुन कर मजा आ जाए। मुझे पूरी फिल्म के दौरान कहीं भी हंसी नहीं आयी। लाली और पिंकी की दुश्मनी की जिस वजह को फिल्म के क्लाइमैक्स में दिखाया गया है, वह हास्यास्पद है। हालांकि फिल्म बहुत उबाउ नहीं है, लेकिन एक फिल्म के बेहतर होने के लिए जो चाहिए, वह इसमें नदारद है। फिल्म का संगीत इसके प्रभाव को बढ़ाने की बजाय बाधित करता है। सन्नी सिंह का भी अभिनय हमें प्रभावित नहीं करता है।
‘जय मम्मी दी‘ एक अति साधारण फिल्म है
मेरी राय में रेटिंग - 2
- दीपक मिश्रा, देशदुनियावेब
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